Friday 1 April 2016

तर्कों का सच

चलो सही गलत की लड़ाई करते हैं
क्या मिलेगा, पता नहीं
थोडा सुकून, अहंकार की पूर्ति 
तर्कों की झूठी जीत
अगर यही है इसका परिणाम
तो नहीं जानना सही को
गलत जैसा कुछ होता नहीं
मैंने अपना जीवन जिया है
मेरा सच मेरा जीवन है
मेरा सच मेरा नजरिया है
मेरा सच मेरा अनुभव है
मेरा सच मेरी कमियां है
मेरा सच मेरी महत्वकांक्षाएं है
मेरा सच मेरे सपने है
मेरा सच मेरी ज़रूरतें हैं
मेरा सच मेरी चाहतें हैं
मेरा सच मेरा मन की तृप्ति है
इन्ही सब चीज़ों से मेरा सच बना है
तो सबका सच अलग-अलग हुआ
सच और हकीक़त कुछ अलग है
झूठ क्या है, मालूम नहीं
तर्कों की जीत ही अगर सत्य है 
तो पता नहीं मैं क्या कर रहा हूँ
मेरा सच सिर्फ मैं हूँ
और वो भी हैं, पर जैसा मैं उन्हें देखता हूँ
नहीं करनी यह सच-झूठ की लड़ाई
जीत किसी की भी हो, हारता मैं ही हूँ....

3 comments:

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  2. दोस्त तुम्हारी इस कविता में तर्कना की ही कमी है| माफ़ करना में तुम्हे जनता भी नही फिर भी बस सलाह के रूप में ही बोल रहा कि अगर तर्कों की लड़ाई सिर्फ अहंकार की पूर्ति या सुकून के लिए ही होगी तो ज़ाहिर सी बात है कोई परीणाम नही मिलेगा आपको क्योकि आपने उसको व्यवहार में तो उतारा ही नही ताकि आप उसकी पुष्टि कर सकें इसलिए इससे अगली ही लाइन में आपकी निरासा भी सामने आई| आगे आप कहते है की गलत जैसा कुछ नही होता अगर गलत कुछ नही है तो सही भी कुछ नही होगा और अगर सही गलत कुछ नही होता तो आप कैसे तय करेंगे की आपकी ये कविता सही है|आगे आप सच तय करके कहते है कि आपका जीवन सच है, आपका नजरिया सच है, आपका अनुभव सच है| दोस्त जाहिर सी बात है की नजरिया बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन आपका नजरिया आपके वर्ग के दर्शन को ही दर्शाता है तथा आप किस उत्पादन की गतिविधियों से जुड़े हुए है इस चीज़ पर प्रभाव डालता है, हो सकता है ये थोडा समझने में मुश्किल हो तो हम इस पर अलग से बात कर सकते है | आपके जीवन का हर अनुभव सच नही होता आपको उस अनुभव का विज्ञानिक दृस्टीकोण से उसका विशलेषण करना होगा |इन्द्रियग्रह ज्ञान (perceptual knowledge) से बुद्द्धिसंगत ज्ञान (rational knowledge) तक पहुचने के लिए इन्द्रियग्रह ज्ञान को बार-बार व्यवहार में तर्क की कसौटी पर खरा उतरना होता है | कमिया सब में होती है ये सच है लेकिन कमियों को जान कर अपना लेना गलत है ,उससे ना लड़ना गलत है वो ठीक होती है या नही ये अलग बात है | महत्वकांक्षाएं ,सपने , जरूरत , तृप्ति तथा चाहते ये आपके जीवन का सच है ? महत्वकांक्षी होना गलत नही पर सवाल ये है किस लिए ? अगर अपनी जरूरते पूरी करने के लिए , अपने सपने पूरे करने के लिए , अपनी तृप्ति के लिए तो आपके तर्कों की जीत का कोई महत्व नही | दोस्त इस कविता के बारे में क्यूँ लिख रहा हु इसके दो कारण है एक तो आपका नाम भगत सिंह है और आपकी कविता से लगता है आपने शहीद-ए-आज़म भगत सिंह को रत्ती भी नही पढ़ा अगर पढ़ा होता तो इतने निरास ना होते|और दूसरा आपकी कविता से प्रभावित लोग इससे अपनी कमिया छुपा सकते है लेकिन आपको उनकी कमियां छुपाने में नही बल्कि उनसे लड़ने में उनकी मदद करनी चाहिए|
    आशा करता हु आप इन बातों का बुरा नही मानेंगे क्योकि ये तोह हमने अपने शहीदों से ही सिखा है की अपने दोस्तों की भी आलोचना कड़े शब्दों ही करनी चाहिए अगर उससे उसकी गलती का एहसास करना हो तथा सुधारना हो|
    क्रांतिकारी अभिनन्दन के साथ

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    1. बुरा मानने की कोई बात नहीं है, पर सलाह के आवेश में आपने बहुत कुछ सुना दिया और ज्ञान बाट दिया | फिर भी आपने इतना कुछ लिखा अच्छा लगा, आलोचना अच्छी होती है, विचारों के विकास में मदद करती है, जैसा कबीर ने कहा है, "निंदक निये ही राखिये..." | अब उत्तर पर आता हूँ, मुझे नहीं मालूम आपने उपर लिखी हुई पंक्तियाँ कितनी बार पढ़ी है, एक बार या कई बार, पर आपके जवाब देने में बहुत जल्दबाज़ी नज़र आई | मैंने "मेरा" शब्द का बहुत प्रयोग किआ है, इसका मतलब ये नहीं कि ये मेरे आतंरिक सोच को ही दर्शाएगी, पढने वाला इसे अपना समझ कर पढ़े इसके लिए इस शब्द का प्रयोग किआ जाता है | वैसे ही जैसे मेरे लिए मेरा सच, और हर पढने वाले के लिए उसका सच | हर इन्सान की सोच उसके अनुभवों पर आधारित होती है, मेरी भी और आपकी भी और बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जो अपनी सोच और नज़रिए से परे हटकर देख पाते हैं | सही गलत हर इन्सान का अलग अलग होता है, ये मैं हर बार कहूँगा और इस दुनिया में एक सही या एक गलत बात हो ही नहीं सकती, सिर्फ बहुमत इसका फैसला करती है | जैसे की एक आदमी की कई पत्नियां होना एक समय सही होता था क्योंकि ज़्यादातर लोगों ने उसे स्वीकार, लेकिन आज ऐसा नहीं है | आप कहते हैं perception से rationality तक पहुंचना चाहिए, बिलकुल सही बात है और मैं सहमत हूँ, पर जहाँ लोगों में common sense ढूँढना मुश्किल है, rationality बहुत दूर की बात है | rationality comes after critical assessment of facts itself by the help of arguments. अब तर्क भी सही अर्थात logical होना चाहिए, नहीं तो कुतर्क भी कहाँ दूर रहता है | मैंने कहा था कि मेरा सच मेरा जीवन, नजरिया, अनुभव, कमियाँ, महत्वकांक्षाएं, ज़रूरतें, चाहते और मन की तृप्ति है, क्योंकि ये हमारा दैनिक सच है, हम हर दिन इन्ही से झूझते हैं | जिस दिन इन्सान इन सब चीज़ों के उस पार देख सकेगा, उस दिन हम rational हो जाएँगे | और आप मुझे से महत्वकांक्षी बोलने लगे, मुझे मेरे ही नाम की दुहाई देने लगे, नाम में क्या रखा है? असल बात तो बात की गहराई में है पर आप उसके उपर ही तैरकर आ गए और अपनी कुंठित और घृणित सोच से ये सब बखान कर रहे हैं (इतने कठोर शब्दों के लिए माफ़ी), और अनुमान लगा रहे हैं कि मैं क्या हूँ? मेरा नाम? मैंने भगत सिंह को पढ़ा है या नहीं? लोगों में ये भी बहुत गलत आदत है, बहुत जल्दी अनुमान लगाने लगते हैं | आपकी भी गलती नहीं है, आप अपनी सोच में ही सिमित है | शायद मेरी इन बातों से मेरे लिखने का मतलब मालूम हो गया होगा, उपर की बातें इसलिए लिखी गयी थी क्योंकि हम सब आजकल इसी होड़ में लगे हुए हैं कि कौन सही है? आपने इतना लम्बा लिख दिया क्योंकि आपको लगा कि आप सही है, और मैं इस लिए लिख रहा हूँ क्योंकि मेरी नज़र में मैं सही हूँ, फिर शायद आपको लगे की शायद आप गलत मेरा अनुमान लगाने में, तो आपको अच्छा न लगे,फिर भी शायद आप लिखो या आपको लगे कि मैं गलत हूँ तो आप फिर लिखोगे, दोनो ही वक़्त आप या तो अपने अहंकार की पूर्ति कर रहे होगे या तो थोडा बहुत सुकून कि आपने कुछ जवाब दे दिया | मुझे भी कुछ-कुछ ऐसा ही महसूस हो रहा है | अगर आप सही-गलत छोड़कर मुझसे यूँ ही तर्कों के आधार पर बहस करते तो बात कुछ और ही होती | आपके धैर्य और समझ के लिए आपको सलाम |
      धन्यवाद् |

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